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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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पाबासर

प्रताप-प्रभा
गीत चित इलोल्
सुतन उदय हिन्दवांण सूरज, हिन्दवां हिय हार।
बिख्यात हुवै प्रताप बसुधा, धरम खत्री धार।।
तौ बहिलाह जी बलिहार, हेतू हिन्द रौ बलिहार।।1।।

आधीन राजा सबै अकबर, बन्द हुयगा बोल।
स्वाधीनता परताप सेवी, खिंवै हिरदौ खोल।।
तौ अणमोल जी अणमोल, अधिपां मांयनैं अणमोल।।2।।

रिजक भय सूं नृपत रीझत, खीज पड़गी खाड।
हां हां मिलै अकबर हताई, जोधवां घम जाड।।
तौदी गाड जी दी गाड, गरिमा हिन्द री दी गाड।।3।।

मसती लहैसब बैठ महलां, गरब करत गुलाम।
भरमायगा अकबर भरोसै, कर विया बेकाम।।
तौ अठजाम जी अठजाम, आलस छावियौ अठजाम।।4।।

सजधजी सेना लगी सम्भण, अकबरी आदेस।
कर कूंच दल मेवड़ा कांनी, प्रबल वेग प्रवेस।।
तौ फण सेसजी फण सेस, सहलण लागवी फणसेस।।5।।

भिड़ गयौ रांण प्रताप भालौ, अहर छायौ अंध।
मच गई खलबल सेन मुगलां, मान सेना मन्द।
तौ पाबन्द जी पाबन्द, पूरी हार रै पाबन्द।।6।।

केकांण चेतक तणी करीत, जंग साथी जोर।
रिच्छा घणी प्रताप राखी, इसौ अस्व न ओर।।
तौ तपरतोर जी तप तोर, तारिफ तुरंगा तप तोर।।7।।

भमिया गिरी प्रताप भागी, रुप बागी रंग।
स्वपाधीनता हित कस्ट सहिया, देख दुसमण दंग।।
तौ तल तंग जी तल तंग, तुरकां कीधिया तल तंग।।8।।

सोता जिकण सेजां सुमन री, सुबै धती सेज।
घास री रोटी खाय गिरी में, तोई बढ़ियौ तेज।
तौ गुम्मेज जी गुम्मेज, गौरव देस सौर गुम्मेज।।9।।

रहसी अमर प्रताप रांणा, सूरवां सिर मोड़।
स्वाधीनता परतीक सांचौ, चाव गढ़ चित्तोड़।।
तो बेजोड़ जी बेजोड़, बीरां छाप दी बेजोड़।।10।।

कायर काट
दूहा

जीवै छानै जगत मे, गरलां पीवै घूंट।
पराधीनता पावियां, कायर खावै कूट।।1।।

हंसै लोग हताइयां, जद कद कायर जोय।
कायर विरती कारणै, करै पूछ ना कोय।।2।।

जणणी दूध लजायदै, लाजै चुड़लै लाज।
कलंक लगै कुटम्ब रै, कायर जीवां काज।।3।।

झुक जावै जावै जमीं, अर सहवै अन्याय।
कायरता रै कारणै, घरणी लाज गमाय।।4।।

बात न सांची बोलवै, झट डर होवै झेर।
भीरू कायर भावना, फिरती रहवै फेर।।5।।

डोलां मिनकी सूं डरै, अड़ै अंधारै ओर।
भड़गा ऊंडा भवन में, कायर विरती कोर।।6।।

सुणियौ तलवारां सबद, रयौ कालजौ कांप।
बेरी धूंकै बारणै, ऊंडी भड़िया आप।।7।।

मारौ खोसौ मोकला, जोरूी ओर जमीन।
कायर बिरती कारणै, देखौ भूंडा दीन।।8।।

बिरदै ना बिरदायां, हलकारायं ना होय।
भीरू कायर भावना, कारी लगै न कोय।।9।।

जांणै बत्तौ जीबणौ, मरणौ जांणै मेख।
झगड़ में कायर जिका, दूरा न्हासै देख।।10।।

हाकौ सुणियां हापवै, धड़कौ सुणियां धाय।
नांव लजावै नाह रौ, कायर जीव कहाय।।11।।

समर छोड़ भड़िया सदन, जीवण कायर जीव।
मूंडौ दरसावौ मती, परणी कहवै पीव।।12।।

भीरू बणिया बालमा, कुल में थाई कांण।
कंता थारै कारणै, लाजै परणी लांण।।13।।

कटक छोड़ आया कियां, बालम जीव बचार।
मरणा सूं डरणा मिनख, भूमि बणिया मार।।14।।

बातां में खाता बलै, गाथा झूठी गाय।
भीड़ पड़ै झट भागवै, कायर मीत कहाय।।15।।

पूगा घर झटकै परा, रै डरता जुध राड़़।
कायर कंता हितकिया, कामण बन्द किंवाड़।।16।।

बालम भाखै बारणै, कामण खोल किंवाड़।
औ मुख देखूं ना अबै, तरुणी दीनौ ताड़़।।17।।

बालम जीव बचाय नै,ं ऐ दोड्‌या घर आय।
कापुरसां री कामण,ी खपै कटोरी खाय।।18।।

भाभोसा किंम भूलगा, इसड़ा घर री ओल।
कापरुसां रै कुंज में, मन सतियां रौ मोल।।19।।

सासू जायौ स्यालकौ, भड़ण घुसाली बीच।
सतियां हन्दा सिन्धु में, करियौ कादौ कीच।।20।।

जिणधर कायर जलमियौ, दिन खोटा उण द्वार।
जमी धरम अर जोरु वो, अमूझैज इकसार।।21।।

मोटौ करियौ माबडी, पाल पोस परिवार।
कायर आज कुटुम्ब रै, कोजी काढ़ी कार।।22।।

धिक धिक सबै धिक्करावै, राजा हो या रंक।
कायर मिनखां कारमै, कुल में लगै कलंक।।23।।

उत्पादन घटवै अधिक, सेवा ना सतकार।
कायर जनता कारणै, देस गुलामी द्वार।।24।।

पतलन देस रौ व्है परौ, जतन हुवै ना जोर।
कायर पुरसां कारणऐ, दुसमी हाथां डोर।।25।।

वीर करै हिव सूं वरण, मान मौत बरमाल।
जीव लुकाता जीविया, कायर डर उर काल।।26।।

बाजै रण री भेरियां, करै न ऊभा केस।
कदे न आवै कायरां, समझ सूर संदेस।।27।।

गरणावै घण गोलियां, लागी सींवां लाय।
घर में ओडर गूदड़ा, कायर मूंड लुकाय।।28।।

विपत देस माथै वणी, सतरु गाजै सींव।
ठंडा पड़िया ठीकरा, कार अवर क्लीव।।29।।

जिण धरीत घण जलमिया, कार अवर क्लीव।
परधानीत देस पर, नेखम लागी नींव।।30।।

गरिमा मान घटावियौ, देस गुलामी द्वार।
कायर री करतूत सूं, होवै सेना हार।।31।।

कायर बद करतूतियां, दर दर जीवण दोख।
लगै दाग इहलोक में, पूछ नहीं परलोक।।32।।

सिणगार-सवैया
केस भुजंग सुरंग भयौ किरि भाल टिकौ रिव ूगत राजै।
खंजण लोयण बंक भुवां खुल नाक छबी नथ बेहद छाजै।।
पोयण फूल सी होठ पराक्रम बीजल दंत सुकामम बाजै।
जोवत जोवत नेंण थकै जग कोयल कंठ सुहेट बिराजै।।1।।

दोयम सुमेर दिखै कुच देखथ चंद मुखां दिस जाय रिया है।
पाछाल भा हय छीण कटी प्रभ रैकर मेहन्दी रचायरिया है।।
आंगल नक्ख चमंक नगां अग नाभिय रूप त्रिवेणी लिया है।
जंघ प्रभा कदली जिम जोवत होत हजारूं हुल्लास हिया है।।2।।

राखड़ि वेणि सहेलड़ि झावक सेथऊ टीलऊ चांदल वाली।
चाकंण सीस फुलां फुलि मोरल वेसर नक्क अरट्ट रुपाली।।
काटउ फूल नखां घड़ि कूंडल बीटल एकुट चीड़ उजाली।
तांड़क नागल मादलियंा मुद्र कांकण झांझर नार प्रभाली।।3।।

हांस हरादिक साकंलि बालिय कायूव चुड़लौ पीव चितारै।
कांकणि पूंचिय है हथ बालड़ अरधांगिनि य मेखला धारै।।
नेव बींछिया घूघरि घूघरा त्रेघड़ि पन्नड़ि नार तिहारै।
दूल्लड़ि पाड़लि कांवी प्रभाक्रत सोडसी सालै सिंगरा संवारै।।4।।

वायल घाट पिताम्बर चोलऊ पीत कुसूंमल जूइ कसीदा।
लाल रता अमरी कमखां कसवी पटोली तन धारण कीधा।।
साड़ी पटोल सुहावणी सुनद्र केसर चंदण लेप सीवीधा।
चूर अबीर कपूर गुलालीय तेल सुगंधित वेणीय दीधा।।5।।

देख मुखां प्रभा लाज रयौ ससि दंत छबी लख कामण दोरी।
लोयण आभ ते पोयण लाजत केस प्रभा घन फागत फोरी।।
जंघ प्रभा कदलौ झुक जावत केहर खीण कटिप्रभ चोरी।
होत सुगंधित गेह में गति मस्त मराल सी चालत गोरी।।6।।

चंद रवी सिर व्याल चढ्‌यौ मार कटार रयौ है सुगाकै।
धारण होय धनूरख किया कुण मार रयौ दव और मृगाकै।।
लाल घटा खुल जाय लखी मच बीज चमंक पड़ै घर आकै।
दोय सुमेर दिखै छिति तोड़त दै सरणौ जिमी ऊपर दाखै।।7।।

सुन्दर गात सुबात अखै अवदात हियै दिनरात सदाई।
साथ रहै दुख सुक्ख में साथण चात मनां छिब अन्तर छाई।।
प्रात ऊठै झट हाथ घटी पर बातहि बात में ठांव भराई।
सात सुखी घर कंत सदा भल आथ रूपी घर कामण आई।।8।।

रीत कुलां मरजादीय राखण भाखण बोल मधू वधु भारी।
सोल कला परवीण सुपातर बीनणी में कछु नायंज खामी।।
जांणणहार सनेहिय सागर होत उजागर कीरत नामी।
देखत होत हुलास हियै दुति थाय हथां प्रभ साजन थामी।।9।।

एक समै सजनी घर अन्दर सोय रही घण केस संवारै।
आय पती ढिग बैसत आसण लागत हाथ लखै सिर लारै।।
जांणत व्याल पिया झझकै सजनी कूं बचाण उपाय बिचारै।
होय भयातुर भाग गया पिव जगात नार अचूम्ब निहारै।।10।।

मेड़ि चढ़ी घण केस संवारण झींक हवा मझू यूं लहारई।
रुप घटा जिम धार रिझवात मोर मनां बिरखा जिम आई।।
बावइयौ पिव बेंण उचारत स्वातिय चाह मनां हरसाई।।11।।

आव त देख पति हित आदर कामण यूं सिणगार कयौ है।
भाल मझां चमकै बिंदिया जग जांण लियौ रवि ऊगिरयौ है।।
जांण घणा जग हाथ जुहारत भिलेवणै अर्क दियौ है।
छाय प्रभा पंखेरू घर छोड़ भोरिय सोर भूं मध्य भयौ है।।12।।

एक समै सजनी सज सावण घूम रही मझ बाग बगीचै।
बोल उचारत कोयल व्याकुल आज रमै कुण कोयल नीचै।।
नाक छबी सुवटौ लख लाजत भा नयणां मिरगा चख मींझै।
क्रोध करै कदली लख जंघण सौरभ सूं धरती पद सींचै।।13।।

आस लखी पिव री घर आवण झांक रही चढ़ नार झरोकै।
गोर घटा जिम है गरिमा तन आवत दीख गया पिव मोकै।।
होत हुलास यु होठ खुलै हंस बीजल दंत चमंकत गोखै।
कांसिय ठावं धरै घर भीतर लाग रयौ डर यूं घण लोकै।।14।।

कामण कुच गुम्बजिय मंदिर भाव पयोद नेह भरै है।
तार्म कलस्स जिमिप्रभ ऊपर हाजर पाय विकार हरै है।
मरूत है तिण में पिव री अरू सांज सवार जुहार करै है।
ीसतलता बगसै तन साजन जोबन में रहूंत झुरै है।।15।।

पाय अमावस आय पिया घर सोलह नार सिंगार सजायौ।
देह दमंकत दामण ज्यूं गरिमा मुख कामण चंद सवायौ।।
लोक अचूंब करै हिय में किम आज अमावस रौ ससि आयौ।
देख कुमोदनी सागर में खुस होय घमौ तन यूं बिकसायौ।।16।।

नीर भरांण गई तट सागर नार नवेल सिगार नवीना।
ब्याल करी ससि केहर खंजण सारस कोयल हंस अरीना।।
सागर हेक अचूम्ब भयौ मन एकल साथ कियां सब कीना।
हेकण साथ हुवा तन हेकट नीर भरै घघरी जल पीना।।17।।

सागर में कर धोवत सुन्दर पोयण फूल प्रभा रद पाई।
नाल कमल्‌ल सुहाथ निहारैय पंखुड़िया हथलेी प्रभ छाई।।
नाल उठी उलटी नभ ऊपर पंखुड़िया किंम हेट उपाई।
पोयण रै समवड्‌ड दसा सजीन कर धोवत आज जमाई।।18।।

मांग भरी सजनी सिर ऊपर जांणक बीज चमकंत जारी।
भोर दुपार सुसांझ रू रात में एकल सी अवदात निहारी।।
बींब पड़ै घर आंगण बीचज पास पड़ौस रु जाय पछारी।
व्है चख चूंद पिया चख देखत ध्यान दियौ सिर घूंघट धारी।।19।।

हार गलै वधु बहेद छाजत और कटी कणदोर अपारा।
साड़ी हरि तन छाजत सुन्दर रूप हरौ धरती जिम धारा।।
चीर चमंकत गोट किनारियै रात जियां, नभ राजत तारा।
रत्नमणी चमकै तन ऊपर रात मझौ घर नांय अंधारा।।20।।

साजन सांज सवेर सुभावत सीर सरीर सुदात सहारौ।
पूर्ण प्रेम सगै परणी जद पासहि पास रहै पिव प्यारौ।।
दूर दराज गयां दिल दाझत दोड़हि दोड़ डहावत द्वारौ।
नेंण छबी नित साजन नारिय नाह करौ नंह नार ते न्यारौ।।21।।

केस घनां सजनी घण करीत ब्यालिस रूप इसौ नहं भावै।
ब्याल भखै खग देह जिनावर ओर मना ंडर लोग उपावै।।
जेर बसै मुख ब्याल घमौ खुद सेव रिझवै हि देखत खावै।
सीतल ओर सुगंधित साथण कामण केम आणंद करावै।।22।।

मांग दिवी उपमा कव दामण दामण रुप डरावत दोलै।
खीज पड़ै धरमाथ चमंकत रै कड़कै धन धान कूं रोलै।।
प्रेम करै तिण नै झट पूगत टूट पड़ै सिर साथ हि टोलै।
आणंद दायक मांग सुकामण भेटियां अंग चढ़ात हिलोलै।।23।।

रुप रवी उपमा कव देवत नारिय भाल लगी नव टीकी।
सूर तपै धर देवत ऊसण तावड़ तेजिमय लागत तीखी।।
झांक सकै कुण सामयि सूरज जोवत अंख लगै घण फीकी।
झांक परी बिंदिया परणी दत सागर नेह उदात सरीकी।।25।।

नए छबी दिय खंजण नाहक खंजण कीट पतंग भखै है।
रुप कटार दियौ चख नाहक जीव मरता कटार झखै है।।
कायर है उपमा हिरणी सम पोयण रुप न साय पखै है।
कामण नेंण समौ नहँ कोइक छोड़ बातां छिब हूंत छकै है।।25।।

चांदमी रात संजोग पिया सुख जागत जागत बात जमाई।
नेंण लगै टक टक्क निहारत जोबन गारत रात न जाई।।
सागर नेह मझां सनजी पिव सांपड़वै दिल खोल सदाई।
नीर पिया सजनी मछली तन नार अधार पिया प्रभा पाई।।26।।

रुप धरा सम काणण धारत मेहसमौ पिव तोय बखाणूं।
आय परी बरसै बरसा घर हौ हरियाल हियौ हरसाणूं।।
मेह बिना दती कह कीमत सांच लखावत ज्यूं समसाणूं।
मेल घमौ दोरती अर मेह र जोग तियां सजनी पिव जांणूं।।27।।

चन्द्र पिया घण रुप चमंकत कामम रुप कहात चकोरी।
देख ससी हरखै हिव पंछिय राह अंधेरिय मांय रु दोरी।।
चंद दिखै नभ में नहँ आयर केंम खिल्लत कुमोदन कोरी।
देत रहौ दरसण नित प्रीतम जीवण प्रांण करी चित चोरी।।28।।

एकहि जीव वपु दव दीखत साजन की सजनी चित चोरी।
स्वातिय चाह करै जिम चातक तेम करै सजनी पिव तोरी।।
डूंगर मोरी बिना नहं सोवत पीव बिना दिल कामण दोरी।।
बीज बहिऊम घटा प्रभ नाहक नार सिंगरा पिया बिन फोरी।।29।।

चंद बिना निजजेम लखावत नीर बिहूँण लगै जिम नाडी।
फूल बिना गत बेलड़िया जिम आंख बिहूण प्रभामुख बाडी।।
छात बिना घर मांयलगै जि म्यान बिहूण कटारिया काडी।
तेम लगै सजनी बिन साजन गोगण हुी गरिमा तन घाडी।।30।।

नींद निवार उठी सनजी नव केस घटा बिखरी मुख सामी।
नेंण रया अलसाय निसा सम फेल भाल बिंदी प्रभा नामी।।
लाल कपोल निसा भयै छिबप कोड कियौ दरसावत कामी।
सीतल नारलगै तन सारिय जेम सरोवर अंधड़ थांमी।।31।।

सांपड़ मेड़ि चढ़ी सजनी झट सोभ बढ़ावत सद्य सनाता।
केस भुजंग चवै मुगत टप नेंण खिले जिम पोयण प्राता।।
बीजल में जल बूंद झरै जिस गोर करौ दिपती तिय गाता।
चार प्रभा ते झुकी नव कामण बेग करै हिव में अवदाता।।32।।

आलस छायररयौसजनी बप आंगण आय लगीं अंगड़ाई।
जेम घट लहराय रही नभ चंद छबी तिण ाय लुकाई।।
पोयण फूल हिलै लहरां ढिग जेम घटा सिहार गल छाई।
बंक पड़ी कटि केहररे जिम मावर पेर लगी दरसाई।।33।।

चंदण लेप करै तन कामण चंदण पेड़ सी लागत प्यारी।
केस भुजंग जियां सिर डोलत सोरभ मस्त हुवा इकसारी।।
केहर कीरकरी अर खंजण भाव मराल मिलै थिग भारी।
लेत सुगन्धपियामन रीजत बारम बार हुवै बलिहारी।।34।।

कोयल खीज करै गल कामण कारण तेण पड़ी रंग काली।
लोयण भा हिरणीज रिसावत डर डर भाग रही दर पाली।।
सांवल रुप करी इणकारण मस्त गति तिय ली मतवाली।
छीण कटी तिण केहर छीजत कोप लियौ परगत्त हिंसाली।।35।।

जंघ प्रभा तिय जोवत जोवत रीस कियां कदली द्रम काटै।
कामणतेज परां दुख दामण आवतजावत यूं करड़ाटै।।
म पयोधर देख अमूझत होत समुरे गिरी रंग हाटै।।
होठप्रभा कुसुमावली कोपत ते कज धारत कोमल कांटै।।36।।

सीतलता हिम मायं बिराजत तेज जियां रिव मांय प्रकासै।
नीर निवास करै घन कांठल तेल मझां चिकणाहटवासै।।
वास सुगंधित फूल मझां जिम नाम ज पावन गंग निवासै।
ेम बसै सजनी मन साजन लेवत नाम तिका हर सासै।।37।।

नीर नखै मछली घम सोभत जोत ठिकांण पतंग प्रकासै।
दामण आम घटा मझ दीकत मान सरोवर हंस हुलासै।।
चंद दिखै खुस होत चकोरनी बेल कुमोदनी जेम विकासै।
तेम जचै सजनी ढिगसजान बारम बार आणंद विलासै।।38।।

होत कमी सरदी तन हेत ज चेत बसंत घमी अब चेती।
साजन जीव जड़ी सजनी सुख छोड परा नहं देवत छेती।।
गोर प्रमाण घमी गिणगोरिय नेह, अपरा बढ़ावत नेती।
देव विजोग संजोग दयाकर लाभसंसारिय कामण लेती।।39।।

छात परातिय ढोलियौ ढालत मास बैसाख वदु तप ब्यापै।
रात अमावस साजन राजन थाप आणंद रु पूनम थापै।।
चांदणी रात हुलास चढ़े चित मोह अयाग सरोवर मापै।
कामम भाग बड़ासुख कारीय आज संजोगिय राग अलापै।।40।।

जेठी गरमास घमी जद पोर आठूं तन होत पसीनौ।
पाय पयोधर ताप न व्यापत देख सीस सुख सम्पत दीनौ।।
सीतल केस घटा सजनी सम चंदण सोरभ है तन भीनौ।
सीतलता सजनी तन साजन नेह उजागर नित्त नवीनौ।।41।।

रोयण ताप अमाप रयौ रत दीह छियां वसु हेर तोड़ै।
लूह लपट्ट झपट्ट रही जग जावत बाहर नूं मुख मोड़ै।।
अंधड़ बाज रगौ मिरगांइत चंद पु्‌रभा घण तेज न चोड़ै।
होय व्यतीत समै सुख सायंत जां घर पीव जोड़ायत जोड़ै।।42।।

मास असाढड रही घम ऊमस तावड़ड तेज तनां तड़फायौ।
बाबइयौ पिव हबोल ऊड़ै नभ व्है सजनी पिव साथ सवायौ।।
नांय डरू पिय वहै नजदीक ज दामण क्यूं करड़ाट दिखायौ।
मूझ पिया सुद लेय लही जव देरघरां पिव तोरइ आयौ।।43।।

साजन वास विसाल रहै सुख सावण मास सुवास सुरंगौ।
चांदणी रात चमंकत चंदव चिंतव चंचल रौ चित चंगौ।।
प्रेम प्रतीक पिया पुल पोखत पास जियां परकास पतंगौ।
बीजल रातसुहातहियै बिच बालम आवत स्सै दुख भंगौ।।44।।

कांठल कालिय रूप कियां कम आज सभी उतराद अनोखी।
बीजल रौ भललाट घनांमझ चाल लगै सिहरां गल चोखी।।
पूरण आस धरा पर पावत रांमत गावड़ इन्दर रोकी।
सावण लक्ष्मण आभसबै सुख पूर प्रभावित कामण पोखी।।45।।

मेह घरां बरसै मुसलाधर मेड़िय आंगण छाट न णावै।
प्रेम बढ़ै अदकोज नखै पिव आणंद जोवन सावण आवै।ष।
बीजल रौ करड़ाट सुणै वधु जोवत पीव गलै लग ज्यावै।
लक्ष्मण सावण लोक लहै लभ प्रेम पयोधर पार न आवै।।46।।

भीज रही धर आ बरसात रु धीर वधु पिव संग में धीजै।
ताल सरोवर नीर भरै तर दादुर भा पुरजोर सुणीजै।।
कोयल मोन किलोकत कामण दामण सौ वप आज दुणीजै।
साजन राजन है सजनी सुख लक्ष्मण सावण छेह न लीजै।।47।।

है हरियाल उछाल बहै जल ताल भर्या ठिग पालज तांई।
देह छुया बिजली तन छोड़त सोडसी सोलै सिंगार सजाई।।
होत प्रवेस सनेव हितू हिव माचत जोबन धूम मचाई।
जीव चराचर आज सुखी जग सावण साथ रखाव सदाई।।48।।

भूग गई तन ब्याधिय कामण सावण साथ पिया सुखकारी।
भूख लगै न तिस भूल न नांय थकै प्रिय आज निहारी।।
कोण करै सिणगार कलेवर चाक लगै जग रै अंखियारी।
सावण आस पिया सुख वासिय पास रहै सजनी नितप्यारी।।49।।

सावण तीज तियासजियौ तन भा सिंणगार सजायौ भारी।
लेरियौ सावण रौ खुद लेवत अंग उढ़े लत नेह अपारी।।
जोतिय लाभ लियौ जग जोबन उम्र सनेव की कीध हजारी।
सावण लक्ष्मण छाय रयो सब प्रोढ़िय नार नवेल निहारी।।50।।

भादव मास घटा घनघोरज महे अपार अबै झड़ लागी।
है हरियाल उछाल धरामझ जोवन चाव घरोधर जागी।।
सेंग सरोबर ताल भरै जल आज हुई विपदा सह आधी।
बादल मांय छिपै सिस पूरण भाल रही वधु साजन भागी।।51।।

तावड़ तेज आसोज तपै तन धरीज छोड दियांदिस धावै।
पावत प्रेम अंवेर निसा प्रिय जोबन मेर पे झेर हुय्जावै।।
साख पकै तिय प्रेम पकै सुख ल्याखत जीवण आणंद लावै।
चांदणी रात में चंद्र प्रभा चित कामण साजन कोड करावै।।52।।

कातिक मास किलोल करै कुल कीरत कामण साज केरी।
ठंड बढ़ी घर भीतर सोवत मीठा मतरी रु बेर ककेरी।।
दामण देह दिवाली सु दीपत आस उमेद रखात अछेरी।
जोत जलै दिन रातिय जोबन साथ रहै प्रिय सांज सवेरी।।53।।

मिंगसरी मास सरद्द बढ़ावत जोबन नेह अपार जगायौ।
तेज अबै सजनी तन साजन ओरिय भीतर ढोलियौ आयौ।।
मौसन जोबन रौ ज अमलोक केइजणां इण रत्न कवायौ।
चंद्रमुखी दरसै मुख साजन एक नहीं सब लाभ उठायौ।।54।।

जोस बढै घणा जोबन में जुत मोज बढ़ावत पोस महीनौ।
ठंड मझां पिव ठांठरगौ तन तेज तबै सजनी तन दीनौ।
लार पड़ी सरदो बचबा हित लोग उपाव तिया तव लीनौ।
रक्तिय चाप घटै तन रौ रुत भा सरदी सुख जोबन भीनौ।।55।।

माघ पड़ी सरदी गत मंथ अन्तर थी अनुराग उपायौ।
जोवन रौ कस लोय लियौ जुत ओर पताझड़ मौसम आयो।।
पेड़ छबी अजहूं न पावतसाजन कामण साथ सवायौ।
आट गयौ रुतराज बसंत सु जोर अबै घण जोबन खायौ।।56।।

कूंपल फट रही तन पेडिय बाग बगीचांय कोयल बोलै।
फेल रयौ अनुराग मनांफल डील तिया रस जोबन ठोलै।।
दूर दराज पिया घर दोड़त प्रेम किंवाड़िय आकरखोलै।
आभ बढ़ी घर सुनद्र आखइय ते जिय प्रेम घरोघर तोलै।।57।।

पाय बसंत तणी तिथ पांचम सारदा मात कूं साथ मनावै।
देय सुमत्त सुगत्त दयाकर छलो मनां रख कीरत छावै।।
पीत पिताम्बर बेस कियो वधु गीत, घणा सुरसत्तिय गावै।
साथ रखौ सजनी अरसाजन चाह भली हिक कामण चावै।।58।।

फागण मास बसंत फलोफल आय पकाण नजीक उनाली।
तेज हवा मझ रेत उडै जिम साजन नार गुलाल उछाली।।
ढोल बजै अर गेरिया नाचत नार हुई प्रोढ़ा नखराली।
जोबन फागण वाह लियौ जग राचत नाचत प्रेम रुपाली।।59।।

ओलग कागज आय गयौ अर भा घर फागण फेलत भारी।
नार सिंगरा नवीन सजै नित दोराय छोडण एथ दीदारी।।
उत्तर देय अजूं नईं आबत फागण मास तिया अधिकारी।
लक्ष्मण फागण मोज लखी प्रिय बालम फागण री न बिचारी।।60।।

जावण हेत कियौ पिव प्‌ारतह है डर नोकरी नांय डटगौ।
ओर सखी सुख साजन संगत मोय बिजोग में मान घटेगी।।
पीवहि पीव में जीव र्हयो पक औ बिन पीव के नां खटेगौ।
पौ परभात न फटै पण जीव तिया को जरूर फटेगौ।।61।।

है अरदास दहूं कर जोड़त बालम यूं नहं नार बिसारौ।
मार दहौ तलवलारिय धार सूं यूं तड़छाय पिया मत मारौ।।
जोबन भार समै जुत जीवम पूरण आणंद साथ तिहारौ।
जावण हेत कयौ किं म जावत ई मुक सूं किंम केहूं सिधारौ।।62।।

चांद अबै ठमजा इक ठोड़हि संत रिखी नहं सोवत जागै।
सूरज ओट लुकाय लहौ हरि ओर न आय सकै बस आगै।।
बंद करौ घड़ियां सबही जग तारीख तिथ्थ थमावत सागै।
हे ! हरि आज निसा थिर कीजियै प्रात हुवै न पिया घर त्यागै।।63।।

है सुखवास पिया तव संगत चार दिनां तक जोबन चावौ।
बारम बार नहीं मिनखा तन चोरियासी जूण में एकर आवौ।।
खांण कमांण कमी नहं पौरस ओलग रो डर नांय उपावौ।
पांव पड़ू कर जोड़ कहूं प्रिय ! छोड तियाकूं पिया मत जावौ।।64।।

जाच लही पिव ओलग जावम बेरण आ परभात भई है।
साज समाल रखाय समानज मात पिता पिव धोक दई है।।
मेल मुखां गुड़ पीव चलै मग कामण नेंणज सेन की है।
होय अचेत पड़ी घर कामण नेंण भरै जल धरा बई है।।65।।

पीव धरै पण नेंण झरै तिय चोल हुवा सब भीगत गीला।
खीण हुई परभा पल भीतर जेम संपूरण होवत लीला।।
जीव नहीं समलै घण व्याकुल भीतर भाव मिटै गरबीला।
बोल सकै न रखै तिय अंतर कंत ज पार किया धर टीला।।66।।

बेरण आज बसंत भई पिव ओलग काज हुवा परदेसी।
सीतल मंद सुगन्ध समीरज आज विजोगण रौ हिव लेसी।
फूल रया तरु ओर लताफल सूक रयौ तन मोय विसेसी।
कोयल बोल लगै कटु कानज रै !  बिन साजन जीवन रेसी।।67।।

ढोल बजै तन काम सजै पिव नांय घरां मन मोय मरेगौ।
नाचत गावं गवाड़ बिचै घण गेरियै डंडियै सब्द घुरेगौ।।
ओर सहेलियां है पिव संगत सब्द सनेव मो कान पड़ेगौ।
एम दसा दुखदाई बिजोगण बारम बारहि जीव बेलगौ।।68।।

चंदिय चांदनी मंद लखै चित फागण फंद सतावन फेरूं।
रेण जगै चख नींद न आवत माथ पड़ै दव रूपिय मेरूं।।
नेण बहै जलधार निसा दिन आलाय चीर मूं केम अवेरूं।
जूब रही यूं बिजोगिय सागर हाय ! अबै कित साजन हेरूं।।69।।

रूत बसंत रही तन बालत मालत लूह इसी हिव मांई।
नीर छुयां तन पै छम बोलत जांण जगै तन प्रती सवाई।।
नार घमा निसकाराय नाखत जीवम आज हुवौ दुखदाई।
गोट हुवै हिव भीतर दाझत छाय रही घर माथ धुंवाई।।70।।

चेत मझां हिवड़ौ घम चेतत नेह सरोवर लेत उफांणौ।
भूल लगै न चखै मुख मोजन होय रयौ मन मोय हिरांणौ।।
फूलत काज फिरूं घर भीतर जेम फिरै बेल जोतत घांणौ।
आवण आस रखूं पिव री उर भूल गया पिव तो घर आंणौ।।71।।

रास रमै सुखवास जमै रस भाग बडा मधु मास मझांरी।
गेहूं चणा सरसू ंपकिया अन तेम पकै पिव संगत प्यारी।।
पीव बिन तन मो इम दाझत दाझत साख दखै जिम सारी।
रुप निखार मिट बैन साजन वारि बिना मछी जिम हारी।।72।।

गोर दुखी अठपोर घमां घम बिलख रही गिणगोर तिवारां।
बालम तीज चुकाय दई किंम कोंण कढ़ाय दी आडिय कारां।।
आज थां खोय दियौ सुभ ओसर आवत साल में एकण बारां।
तोर तपै ध नेह तणौ पण गोर दुखी घर मांय गिवारां।।73।।

मेंदि लगया रही कर कामण दूज तणौ मधु मास सिंझारौ।
होत प्रफुल्तित चित संजोगण गत्त विजोगम रै दुख लारो।।
आवत याद पिया मन भीतर साग नेण उठै जल सारौ।
लोयण नीर रलै कर ऊपर मेंदि उतरा दई जल धारौ।।74।।

तावड़तेजसुखी नहं सेज करी पिव जेज हथां कर हांणी।
मास बेसाख तपै बर भीतर बाहर सोषणौ है दुखदांणी।।
फेल रही धर चन्द प्रभा किरणा चुबवै तन तीर समांणी।
राजन छोड़ गया परदेसज रात चखां जल ढोलत रांणी।।75।।

रोयण तावड़ तेज तपावत पंथ चलै दुखिया तन पूरौ।
छाहं ऊभा नर नार पसु तन सक्त करावत सासन सूरौ।।
सीतलता तन आज दहै कुण लेय गया मन साजन दूरौ।
बाहर री बलती तन दाझत लाग रयौ भय भीतर लूरौ।।76।।

जेठ चलै मिरगां मझ अंधड़ तेज हवा तन तीर चुबोवै।
सून लगै सब पीव बिना जग भीतंर भीतंर कामण रोवै।।
पालण कौण अबै दुखिया तन हालण हीणा छबी तन होवै।
मार मती बिलखाय मनमेलू जीव निसा दिन बाट सुजोवै।।77।।

वायु दुती हिक काम करौ हमरौ पिवजी परदेस बिराजै।
जाय दहौ समचार उणां मन कामण आज विजोग दाझै।।
नेण लगै ढिग नीर बहावत संग सहेलियां कामण लाजै।
साजन रे पग री लज लेयनैं ओर सबै समचार लै आजै।।78।।

आय गयौ सनजै नभ बादल मास असाढञ धरा तपतांई।
लेय सुदी धर मेह मंड्यो पण पीव लही सुद कामण नांही।।
ऊमस आ गरमास तमी गत ओर घमऔ अमूझै हिव मांही।
ओलग छोड अबै घर आवियै सून पणौ घर मेटियै सांई।।79।।

ताल भरै जल खाल करै धन नाल नदी जल बेय उंतालौ।
जोत रया किरसांण धोरधर मेर करी ध पै बरसालौ।।
गाज करै नभ आज खुसी मझ मोय डारवत बादल कालौ।
बीज चमंकत आभतणी बस ठोड़ दईतज कालजौ मांलौ।।80।।

चातक टेर लगाय रयौ नभ पीवहि पीव उचारत बांणी।
लूण गिरै जिम घाव परां अर ताव तियां पर सीतल पांणी।।
ग्रीख मझां अगनी तप लागत रात अंधेर अमावस आंणी।।
एक हूं एक बढ्यौ दुख अंतर मंथर जीवम री गत मांणी।।81।।

सावण भावण है सगलै जग तावण री गत मो हित ठानैं।
घोर घटा चमके चपला बिच सोर सिखी पिव देवत कांनै।।
बादल गाज सुणै तन दाझत भीतर भागत जीवण छानैं।
स्याम अबै घर ाव सही घणास्याम घमोज सतावत म्हांनै।।82।।

मेह घमौ बरसै परसै धर हां हरसै धर व्है हरियाली।
भीतर कामण सोच रही चख नीर बयां बणगी इक नाली।।
मेह थकै रुकजाय परौ बहवै सनजी चख नीर उंताली।
सावण साथ रयौ नहं साजन कामण होत वपु गत काली।।83।।

लौ चपला सिहरां गल लागत कामण आज किरै गल लागै।
बादल ओट करी ससि बंधण रंधम कामण रौ मन रागै।।
हार पहाड़ समौ हिव ऊपर साजन बेदरदी दिल दागै।
जीव चराचर ाज सुखी जग स्सै जग रौ दुख कामण सागै।।84।।

ठंड बदी कपड़ा गुदड़डां संग लाग रही झड़ सावण सारी।
गोण हुी छिब कामण गातिय भाव विजोगण री मत हारी।।
आस तणी सजन ीमन भावण तावण री गत पाथ पियारी।
लक्ष्मण सावण बीत गयौ पण साजन आवण री न बिचारी।।85।।

भादव मास घटा घणा बदाल भीजत भूमी लगी झड भारी।
घास हरी फसलां घमघोरम ठोरम ठोर सबां दिल ठारी।।
पूरब पौन चलै परसै वपु लागत तीर बिजोगण लारी।
डेडर बोल विजोग डरावत कोयल बोल न लागत कारी।।86।।

बापरगी नरमी बरस्यां घन आग विजोगम रै हिव ऊठै।
पास पड़ोस संजोग पुकारत बांण विजोग इसी धर बूठै।।
रात खिंवै बिजली हिव रांधत छाप अभागिय सास न छूटै।
लूट लया तकदीर सुलेखियै राम जदै तन कामण रूठै।।87।।

मास आसोज कनागत मंगण ओर बिरामण जीमण आवै।
बारम बार कहै कित बालम आस दबी कर याद जगावै।।
नीर चखां बढ़ियौ निसनारिय ओसिय रूप धराज उपावै।
नार दुखी घर बार दुखी नित खामंद कागद नांय खिंनावै।।88।।

कातकि मास करी अस कामण देवसी पीव दरस्स दिवाली।
आंगण नीप सूं मांडणा मांडत आलय वालिय कीध उजाली।।
तावण आय गई धन तेरस ओर उडीक कराय उंताली।
कातिक मास उडीक करावत बालम कामण आय न भाली।।89।।

मिंगसरी मास बढ़ी सरदी मझ मांय नहीं गरमास मसोड़ां।
कंतिय बाट जोवै घ कामण ठीक लगै नहं तौ बिन ठोड़़ां।।
पोस बढ़ी सरदी तन पाड़तं खालड़ खोस रयौ बिन जोड़ां।
ओलक छोड अबै घर आवियै खामंद धार लही किंम खोड़ां।।90।।

सोरम जेम बसै सुमनां संग सूरज तेज बसै तप सागै।
सीतल वास रयौ ससि संगत ज्यूं सबदां मझ अरथ जागै।।
बादल में चपला जिम वासत लार जियां सकरा मधु लागै।
साथ बसै सजनी हिय साजन आवत याद मनां अनुरागै।।91।।

पोयण नेंण हुव दुख पावत पीत अरू धुंधलापन पायौ।
सांवल होट हुवा दुख संगद मानत चंद मुंडौ मुरझायौ।।
उन्नत कुच्च तणी अवनीतिय जेम पठारिय रूप जमायौ।
छीण कटीज हटी छिब हालत लो कदली जंग नांव लजायौ।।92।।

डींगल के हुवा दुख पींगल मांग चमंक पड़ी गत मोली।
भाल बिंदी बिखरी दुख भोगत खोलत चोल सुपोलिय खोली।।
हार सिंगर दिया धर आलय सूख गई फसलां जिम रोली।
कोण अबै ओलखांण करै तिय हां हिरदा मझ हालत होली।।93।।

भोर उठै सतनी तन भालत छीण प्रभा हिव देखत छीजै।
सूरज देख बढै दुख संगत धारत याद तिया नंह धीजै।।
दाझत देह दुखीज दुवारयि केम भुलावण बात करीजै।
ठंडक पोर लगै चित ठोकर सांझ पड्यांज विजोगम सीजै।।94।।

रात पड़ी हिव मांह रुलावत नीर उफांण कुं रोकत नारी।
सेज पड़ी नसि पोर गई सुद खोय दईज विजोगण सारी।।
आधीय रात अचेत उठी अर नार नभां धर दिस्स निहारी।
तूटत आज हियौ बिलकै घण त्याग दहूं किंम याद तिहारी।।95।।

माग गयौ अर फाग गयौ मझ बालम चेत अचेत बिलायौ।
जेठ बेसाख असाढ़ बलावत पीव तणौ तन भेट न पायौ।।
सावण भादव मास आसोज ज कातिक मिंगसर पोस कवायौ।
लक्ष्मण पीव न याद लही चित कामम साल अकाज गमायौ।।96।।

मादर दहौज कटारिय धार सूं मान पिया विलखाय न मारौ।
सागर बीच विजोग पड़ी घेरियौ मो ो हिव अंधड़ भारौ।।
हात बढ़ाय पिया गत हेरियौ डूबत नाव विजोगम तारौ।
लक्ष्णण याद करौ चित लायकै बालम याद न नार बिसारौ।।97।।

बार गिणूं तिथ सार गिणूं पुनि कोड तिवार अपार कराऊं।
काग उडावत आंम पिया घर सूण सरोदा हमेस लिराऊं।।
हालत ही हिचकी खुस होवत जेम पिया घ आजहि पाऊं।
लक्ष्मण आस निरास करी पण बालम याद कियां विसराऊं।।98।।

सूम कितौ बिसराय दहौ पण हेक टकौ न देवण धारै।
अंध नखै चख रोय गमावत भेसं नखै जि मपाठ उचारै।।
छांट पड़ै चिकना मटका परठेर सकै न जियां हिक बारै।
पत्थ मेल दियौ हिव ूपर बालम ना अनुराग बिचारै।।99।।

जीवण जोत बुझै बलती जग तेल उमंगिय खूटत आखौ।
बाट रही कम आस तणी अब नांय निरासिय अंधड़ नांखौ।।
ओसर बीत गयौ अति उत्तम आ अनुराग झरोकिय झांकौ।
लक्ष्मण जोबन नांय रहै थिर ओ परकास है च्यार दिनांकौ।।100।।

संसार असार
गीत वीरकठ

भजौ हरि नाम भ्रात, सुरगां चलेगौ साथ।
ओी छै जीव आधार, रटौ दिन रात।।
सारौ छै झूठौ संसार, बंधना बांधै बेकार।
स्वारथ रौ खले सारौ, घमी करै घात।।1।।

मिनख जमारै मांय, हर दिन हाय हाय।
कमाई रौ पार कोन,ी लोभी ललचाय।।
जदै लगै काल झाट, बिगड़़सी ठाट बाट।
छोडणी पड़़सी छेल, संसारी सराय।।2।।

हजारां लाखां सूं हेत, चित में ब्यौपार चेत।
सूमपणौ लियौ साथ, दान नहीं देत।।
भूंडी मत बांण भाख, राम नाम हियै राख।
कोडी साथ चलै कोन,ी रम ज्यासी रेत।।3।।

पच पच मरै पूर, दालद हुवै न दूर।
हरी सूं छोड़ियौ हेत, क्रोधी कामी कूर।।
भर कसै पाप भार, दुख रौ प्रवेस द्वार।
लागसी तिकां रै लार, जमड़ा जरूर।।4।।

झिलियौ मोह रो जला, कोनी छोड़ै तनै काल।
पुत्री बहु और पूत, झूठा छै झंझाल।।
सुख में संसार साथ, राजी रहै दिन रात।
दुखां मांय जाय दूर, टोगड़िया टाल।।5।।

इतौ कियां अभिमान, धरै नहीं औरां ध्यान।
ाकास में रखै आंक, कोनी देवै कान।।
मनां नही भावै मोद, जवानी में फाटै जोध।
झपेटै काल रे झिलियां, कट ज्यासी रान।।6।।

चित सूं संवारै चाम, अंतर फूलेल आम।
जोबन गति में, जीव करै, काम काम।।
सुनद्र कामण स्नेह, दपटीजी जी में देह।
एक दिन आसी इसौ, ठायौ मोत ठांम।।7।।

स्वारथ अपणै सीर, तिकड़मी चलै तीर।
ऊंधा सूंधा कर आप, मारै बैठौ मीर।।
भरिया धनां भंडार, काडी आडी जिरै कार।
धरिया रेजासी धरा, छूटियां सरीर।।8।।

हरी सूं बढाावलौ हेत, चित में रखावौ चेत।
सदनीती रियां साथ, जांणौ जूणी जेत।।
दहौ सरदा सारू दान, सबां करौ सनमान।
कूड़ा झूठा नहीं काज, लोकै जस लेत।।9।।

दुखां नहीं दिलगीर, सुखां नहीं सूरवीर।
धरम करम धरी, सांचै आछै सीर।।
लगन हरी में ली,न मोह जेम जलमीन।
(वांरी) लोकै परलोकै लाज, राखै रघुवीर।।10।।

पन्ना 22

 

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राजस्थानी खेल परिषद

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